Monday 16 June 2014

रघु की इशी By Ajupaaly



रघु की इशी


      "एक लड़की थी, दीवानी सी-मस्तानी सी
      फेसबुक पे घूमा करती थी,
      हर रोज़ कुछ न कुछ लिखना चाहती थी,
        न जाने किस्से डरती थी",

        आखिर मे व्हाट्स-अप पे आ अटकती थी,
      फिर कुछ लिखना चाहती और अचानक
          मेसेज डिलीट कर देती और रोने लगती थी,
न जाने किस्से डरती थी I

       वो अपने रघु को हर वक्त याद करती थी,
       फ़ोन करना चाहती थी-खूब बातें करना चाहती थी,
          और फिर रुक जाती थी,
         न जाने किस्से डरती थी I

                 वो अपने रघु को ईश्वर का दिया अन्मोल तोहफ़ा समझती थी,
         उसे अपने दिल में हमेशा छिपाए रखना चाहती थी,
            वो रघु के साथ खूबसूरत सहरो में घूमना चाहती थी,
                 कई बार वो केहने लगती और कहते-कहते चुप हो जाती थी,
न जाने किस्से डरती थी I

                     रघु हमेशा उसकी खबर-तबियत पूछता,
                     वो कहती हम अच्छे है,
                     रघु अगले दिन खबर-तबियत पूछता, 
                     वो कहती हम अच्छे है, 

      बता देना चाहती थी हर दुःख-दर्द वो रघु को,
फ़ोन उठाती और रख देती और फिर रोने लगती थी,
                न जाने किस्से डरती थी I

रघु उसकी हर आदत पहचान्ने लगा था,
ये भी जानता था की सारि बातें सारा दर्द
दिल में छिपाए वो केहती थी “हम ठीक है”
फिरभी रघु अंजान बना रहता था,
रघु उससे पूछता बताओ किस्से तकलीफ है,
लेकिन वो रघु को किसी तकलीफ में नहीं डालना चाहती थी,
न जाने किस्से डरती थी I



  हर बार ये याद करके बहुत खुश हो जाती,
की रघु हर तरह से उसके साथ है,

ओर रघु उसकी ऐसे ख्याल रखता की
क्या बताऊ केसा ख्याल रखता था,
वो अच्छी तरह से जानती थी की रघु उसे कितना चाहता है,
कहना भी चाहती थी लेकिन केह नहीं पाती थी,
न जाने किस्से डरती थी II
न जाने किस्से डरती थी II


उसे पूर्ण विश्वास था की इशी-रघु जरूर एक होंगे I
To be continue after some time....
Love Always

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